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मधुशाला
मधुशालाहिंदी के बहुत प्रसिद्ध कवि और लेखकहरिवंश राय बच्चन (1907-2003) का अनुपम काव्य है। इसमें एक सौ पैंतीस रूबाइयां (यानी चार पंक्तियों वाली कविताएं) हैं। मधुशाला बीसवीं सदी की शुरुआत के हिन्दी साहित्य की अत्यंत महत्वपूर्ण रचना है, जिसमें सूफीवाद का दर्शन होता है।
प्रसिद्धि
[संपादित करें]मधुशाला पहलीबार सन 1935 में प्रकाशित हुई थी। कवि सम्मेलनों में मधुशाला की रूबाइयों के पाठ से हरिवंश राय बच्चन को काफी प्रसिद्धि मिली और मधुशाला खूब बिका। हर साल उसके दो-तीन संस्करण छपते गए। [1]
मधुशाला की हर रूबाई मधुशाला शब्द से समाप्त होती है। हरिवंश राय 'बच्चन' ने मधु, मदिरा, हाला (शराब), साकी (शराब पड़ोसने वाली), प्याला (कप या ग्लास), मधुशाला और मदिरालय की मदद से जीवन की जटिलताओं के विश्लेषण का प्रयास किया है। मधुशाला जब पहली बार प्रकाशित हुई तो शराब की प्रशंसा के लिए कई लोगों ने उनकी आलोचना की। बच्चन की आत्मकथा के अनुसार, महात्मा गांधी ने मधुशाला का पाठ सुनकर कहा कि मधुशाला की आलोचना ठीक नहीं है।
मधुशाला बच्चन की रचना-त्रय 'मधुबाला' और 'मधुकलश' का हिस्सा है जो उम